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Showing posts from January, 2020

वसंत पंचमी की सार्थकता

ओउम् ।। वर दे, वीणावादिनि वर दे। प्रिय स्वतंत्र-रव अमृत-मंत्र नव     भारत में भर दे । काट अंध-उर के बंधन-स्तर बहा जननि, ज्योतिर्मय निर्झर; कलुष-भेद-तम हर प्रकाश भर        जगमग जग कर दे । नव गति, नव लय, ताल-छंद नव नवल कंठ, नव जलद-मन्द्ररव; नव नभ के नव विहग-वृंद को         नव पर, नव स्वर दे । वर दे, वीणावादिनि वर दे।। 💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐 भारत में शिक्षा और ज्ञान की देवी के रूप में जानीं जानें वाली माता आप भारतीय शिक्षा व्यवस्था को जातीय उन्माद से मुक्त कर दो माँ, अर्थ के अभाव में बेहतर से बेहतर प्रतिभा दर दर की ठोकरे खाता  सड़कों पर टहल रहा है.... और पैसे वाले डिग्रीयाँ खरीदकर खूद को अभिजात वर्ग में सम्मिलित कर बैठा है .....।। हे वागदेवी , वीणा वाली मैया  बिना किसी भेदभाव के शिक्षा को जन जन तक पहुँचा दो माँ ...... क्या अमीर और क्या गरीब जो जितना भी पढ़ना लिखना चाहे बिना किसी रूकावट के वह पढ़ लिख ले माँ तब जाकर इस बसंत पंचमी की सार्थकता भारत भूमि पर पल्लवित और पुष्पित होगी माँ.... ✍ कुलदीप योगी 

माँ

माँ झूठ बोलती है..... सुबह जल्दी उठाने सात बजे को आठ कहती  नहा लो, नहा लो, के घर में नारे बुलंद करती है, मेरी खराब तबियत का दोष बुरी नज़र पर मढ़ती  छोटी परेशानियों का बड़ा बवंडर करती है   ..........माँ बड़ा झूठ बोलती है थाल भर खिलाकर तेरी भूख मर गयी कहती है   जो मैं न रहू घर पे तो मेरे पसंद की  कोई चीज़ रसोई में उनसे नही पकती है, मेरे मोटापे को भी कमजोरी की सूज़न बोलती है  ..........माँ बड़ा झूठ बोलती है  दो ही रोटी रखी है रास्ते के लिए बोल कर  एक मेरे नाम दस लोगो का खाना भरती है,  कुछ नही-कुछ नही, बोल नजर बचा बैग में  छिपी शीशी अचार की बाद में निकलती है  .......माँ बड़ा झूठ बोलती है  टोका टाकी से जो मैं झुंझला जाऊ कभी तो, समझदार हो अब न कुछ बोलूंगी मैं, ऐसा अक्सर बोलकर वो रूठती है  अगले ही पल फिर चिंता में हिदायती होती है  ........माँ बड़ा झूठ बोलती है   तीन घंटे मैं थियेटर में ना बैठ पाउंगी, सारी फिल्मे तो टी वी पे आ जाती है, बाहर का तेल मसाला तबियत खराब करता है  बहानो से अपने पर होने वाले खर्च टालती...