प्रकृति अहिंसा की प्रेमी है , और प्रेम की सबसे बड़ी उपासक है । प्रकृति की गोंद में स्वतंत्र विचरने , खेलने - जीने वाले समस्त चर - अचर प्राणी , वस्तु की प्रकृति भी प्रकृति जैसी बन जाती है ...... परन्तु धरा पर सबसे बुद्धिमान प्राणी की ख्याति प्राप्त मानव की प्रकृति, प्रकृति की मूल प्रकृति के एकदम खिलाफ है ..... मानव की फितरत ही ऐसी है कि वह अपने स्वार्थ की सिद्धि के लिए हर चीज के मूल स्वरूप को बदल के रख देता है ...... मानव एवं मानवी भूल का जीता जागता उदाहरण है कोरोना वायरस एक करोना वायरस के आगे 150 करोड़ की आबादी वाला चीन अपने ही घर में बंदी बन गया है, सारे रास्ते वीरान हो गए ... एक सूक्ष्म सा जंतु और दुनियाँ को आँखे दिखाने वाला चीन एकदम शांत,भयभीत। केवल चीन ही क्यों ? बल्की सारे विश्व को एक पल में शांत करने की ताकत प्रकृति में है ! हम जातपात, धर्म भेद, वर्ण भेद, प्रांतवाद के अहंकार से भरे हुए हैं । यह गर्व, यह घमंड करोना ने मात्र एक झटके में उतार दिया, बिना किसी भी प्रकार का भेद रखे सारे चीन को बंदी करके रख दिया है, ...