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Showing posts from June, 2019

पर्यावरण : अभिभावक से अतिथि तक का सफर

प्रकृति हमारी माँ है , माँ से  प्रेम करना और उसकी रक्षा करना हमारा परम कर्तव्य है । हमारे दादाओं- परदादाओं के समय पर्यावरण की भूमिका हमारे अभिभावक के रूप में थी ..परन्तु . आज हमारी कारस्तानियों की वजह से यह अतिथि की भूमिका में आ गया है .... एक वक्त वो था जब प्रकृति हमें सजाती और संवारती थी , एक वक्त आज का है . ...जहाँ  प्रकृति अपने स्वरूप व अस्तित्व  के लिए अपनी ही संतान(मानव) के  आगे  लाचार व बेबस पड़ गयी है ।   आइए एक साथ अपने आने वाले कल को सुरक्षित करे 🤝🤝🤝🤝🤝🤝🤝🤝🤝🤝🤝🤝 अपने आस पास साफ सफाई करके इस मुहिम का हिस्सा बनें ....... प्रकृति के साथ खेलने का नतीजा -:                                                                        एक बार   एक बकरी के पीछे शिकारी कुत्ते दौड़े। बकरी जान बचाकर अंगूरों की झाड़ी में घुस गयी।  कुत्ते आगे निकल गए। बकरी ने निश्चिंतापूर्वक...