प्रकृति हमारी माँ है , माँ से प्रेम करना और उसकी रक्षा करना हमारा परम कर्तव्य है । हमारे दादाओं- परदादाओं के समय पर्यावरण की भूमिका हमारे अभिभावक के रूप में थी ..परन्तु . आज हमारी कारस्तानियों की वजह से यह अतिथि की भूमिका में आ गया है .... एक वक्त वो था जब प्रकृति हमें सजाती और संवारती थी , एक वक्त आज का है . ...जहाँ प्रकृति अपने स्वरूप व अस्तित्व के लिए अपनी ही संतान(मानव) के आगे लाचार व बेबस पड़ गयी है । आइए एक साथ अपने आने वाले कल को सुरक्षित करे 🤝🤝🤝🤝🤝🤝🤝🤝🤝🤝🤝🤝 अपने आस पास साफ सफाई करके इस मुहिम का हिस्सा बनें ....... प्रकृति के साथ खेलने का नतीजा -: एक बार एक बकरी के पीछे शिकारी कुत्ते दौड़े। बकरी जान बचाकर अंगूरों की झाड़ी में घुस गयी। कुत्ते आगे निकल गए। बकरी ने निश्चिंतापूर्वक...