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पर्यावरण : अभिभावक से अतिथि तक का सफर

प्रकृति हमारी माँ है , माँ से  प्रेम करना और उसकी रक्षा करना हमारा परम कर्तव्य है ।

हमारे दादाओं- परदादाओं के समय पर्यावरण की भूमिका हमारे अभिभावक के रूप में थी ..परन्तु . आज हमारी कारस्तानियों की वजह से यह अतिथि की भूमिका में आ गया है .... एक वक्त वो था जब प्रकृति हमें सजाती और संवारती थी , एक वक्त आज का है ....जहाँ  प्रकृति अपने स्वरूप व अस्तित्व  के लिए अपनी ही संतान(मानव) के आगे  लाचार व बेबस पड़ गयी है ।

 

आइए एक साथ अपने आने वाले कल को सुरक्षित करे 🤝🤝🤝🤝🤝🤝🤝🤝🤝🤝🤝🤝

अपने आस पास साफ सफाई करके इस मुहिम का हिस्सा बनें .......

प्रकृति के साथ खेलने का नतीजा -:                                                                       एक बार एक बकरी के पीछे शिकारी कुत्ते दौड़े। बकरी जान बचाकर अंगूरों की झाड़ी में घुस गयी। कुत्ते आगे निकल गए। बकरी ने निश्चिंतापूर्वक अँगूर की बेले खानी शुरु कर दी और जमीन से लेकर अपनी गर्दन पहुचे उतनी दूरी तक के सारे पत्ते खा लिए। पत्ते झाड़ी में नहीं रहे , छिपने का सहारा समाप्त् हो जाने पर कुत्तो ने उसे देख लिया और मार डाला !! 

सहारा देने वाले को जो नष्ट करता है , उसकी ऐसी ही दुर्गति होती है। 

मनुष्य भी आज सहारा देने वालीं जीवनदायिनी नदियां, पेड़ पौधो, जानवर, गाय, पर्वतो,संस्थानों आदि को नुकसान पंहुचा रहा है और इन सभी का परिणाम भी अनेक आपदाओ के रूप में भोग रहा है।

प्राकृतिक सम्पदा बचाओ।।अपना कल सुरक्षित करो  ।।                       

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