ओउम् ।।
मानव_प्रकृति_की_सबसे_उत्कृष्ट_रचना_है।
मानव_के_जीवन_के_दो_पहलू_होते_हैं -
एक तो अच्छाई और दूसरी बुराई ....
धरा का प्रत्येक जीव अपने कर्म, धर्म, आचार-विचार द्वारा इन दोनो पहलुओं से बंधा रहता है ।
मानव_द्वारा_की_जा_रही_प्रति_पल_की_गतिविधियां_ही_उसके अच्छेपन व बुरेपन की द्योतक_होती_हैं ।
यदि वह सत्कर्म_किया तो अच्छाई_का_प्रतीक , दुष्कर्म_किया तो बुराई_का_प्रतीक ....
मानव_के_जीवन_के_दो_पहलू_होते_हैं -
एक तो अच्छाई और दूसरी बुराई ....
धरा का प्रत्येक जीव अपने कर्म, धर्म, आचार-विचार द्वारा इन दोनो पहलुओं से बंधा रहता है ।
मानव_द्वारा_की_जा_रही_प्रति_पल_की_गतिविधियां_ही_उसके अच्छेपन व बुरेपन की द्योतक_होती_हैं ।
यदि वह सत्कर्म_किया तो अच्छाई_का_प्रतीक , दुष्कर्म_किया तो बुराई_का_प्रतीक ....
परम पिता परमेश्वर ने अच्छाई और बुराई दोनों को हमारे अन्तः_करण_के_अंदर_ही_छिपा_रखा_है, बस जरूरत है उन छिपी हुई शक्तियों_को_जागृत_करने_की, स्वयं_को_पहचानने_की , ईश्वरीय_शक्तियों_से_साक्षात्कार_करने_की ........
समस्त ईश्वरीय शक्तियाँ हमारे इस आलौकिक शरीर मंडल में आठ महा शक्ति केन्द्रों पर सुसुप्तावस्था में पड़ी हुई हैं।
आठ_महाशक्ति_केन्द्र
मूलाधार_चक्र
स्वाधिष्ठान_चक्र
मणिपुर_चक्र
हृदय_चक्र
विशुद्धिशंख_चक्र
आज्ञा_चक्र
मनश्च_चक्र
सहस्त्रार_चक्र
स्वाधिष्ठान_चक्र
मणिपुर_चक्र
हृदय_चक्र
विशुद्धिशंख_चक्र
आज्ञा_चक्र
मनश्च_चक्र
सहस्त्रार_चक्र
आज जरूरत है तो इन सभी शक्ति_पुंजों_को_जगाने की ।
पर #प्रश्न_ये_उठता_है_कि_एक_साधारण_व्यक्ति_इन_शक्तियों_को_जागृत_करे_कैसे ?
जिसका सुन्दरतम्_उत्तर_है "योग"
जी हाँ अपनी प्राचीनतम विधा योग ही एक ऐसा सरल व सशक्त माध्यम है, जिसके द्वारा इन शक्तियों को जागृत करके , अपने इस आलौकिक_शरीर_मंडल को एक पवित्र_देवालय के रूप मे प्रतिस्थापित किया जा सकता है ।
प्रकृति_का_एक_बहुत_ही_सुन्दर_नियम_है,
आप जिस भी विधा का अधिकतम प्रयोग करोगे वो विधा उभरती व निखरती जाती है साथ ही साथ आपको पारंगत भी बना देती है ।
अन्त में एक निवेदन आप सभी से व आम जनमानस से - दैनिक दिनचर्या को ठीक- ठाक रखें, यम_नियम_का_अनुपालन_करते_हुए नियमित_रूप_से_योगाभ्यास_करें ।।
पर #प्रश्न_ये_उठता_है_कि_एक_साधारण_व्यक्ति_इन_शक्तियों_को_जागृत_करे_कैसे ?
जिसका सुन्दरतम्_उत्तर_है "योग"
जी हाँ अपनी प्राचीनतम विधा योग ही एक ऐसा सरल व सशक्त माध्यम है, जिसके द्वारा इन शक्तियों को जागृत करके , अपने इस आलौकिक_शरीर_मंडल को एक पवित्र_देवालय के रूप मे प्रतिस्थापित किया जा सकता है ।
प्रकृति_का_एक_बहुत_ही_सुन्दर_नियम_है,
आप जिस भी विधा का अधिकतम प्रयोग करोगे वो विधा उभरती व निखरती जाती है साथ ही साथ आपको पारंगत भी बना देती है ।
अन्त में एक निवेदन आप सभी से व आम जनमानस से - दैनिक दिनचर्या को ठीक- ठाक रखें, यम_नियम_का_अनुपालन_करते_हुए नियमित_रूप_से_योगाभ्यास_करें ।।
बस आज इतना ही ,
आप सभी को सादर प्रणाम
आप सभी को सादर प्रणाम

Om
ReplyDeleteयोग:कर्मसु कौशलम्।।
ReplyDelete