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योग और व्यायाम (Yog & Exercise)

ओउम् ।। सादर प्रणाम 👏👏 #योग_ही_युग_परिवर्तन_का_एक_मात्र_साधन_है ।। 🌱🤸‍💪 #आइए_आज_हम_जानते_है_कि #योग_हम_क्यूँ_करें * 🤸‍💪 🌱 *#अतंर_1* *कसरत को हर उम्र का व्यक्ति नहीं कर सकता है जैसे की वृद्ध या फिर एक बीमार व्यक्ति परन्तु योग में इस तरह की कोई सीमा नहीं होती है।इसे वृद्ध या बीमार व्यक्ति भी कर सकता है जैसे की कुछ आसन होते है जिन्हें आप सिर्फ साँस की क्रिया द्वारा कर सकते है|* *#अंतर_2* *योग के दौरान आपको अपनी साँसों पर ध्यान केन्द्रित करना होता है जिससे शरीर के प्रति जागरूकता में वृद्धि होती है।लेकिन कसरत में आपको अपना ध्यान केन्द्रित नहीं करना होता।* *#अंतर_3* *कसरत में ऊर्जा तेज़ी से व्यय होती है जिसके कारण आप थक जाते हैं। और ज्यादा कसरत नहीं कर पाते।|लेकिन योग में ऊर्जा धीरे धीरे खर्च होती है जिसमे आप थकने की बजाये अपने आप को तरो ताजा अनुभव करते है।* *#अंतर_4* *सबसे महत्वपूर्ण बात कई सारी कसरत के लिए आपको भरपूर स्थान और साधन- समान की आवश्यकता होती है।लेकिन योग के लिए आपको सिर्फ एक मैट और थोड़ी सी जगह की आवश्यकता पड़ती है।* *#अंतर_5* *कसरत के दौरान हम अपनी साँसों पर बिलकुल ध्यान ...
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"मैं से माँ बनने तक का सफर" 🤱 (नारी तू नारायणी है....)

ओउम् ।।                  यत्र नार्यस्तु पुज्यन्ते                                 रमन्ते तत्र देवता प्रेम अंधा क्यूँ होता है ? शायद इसलिए कि माँ बिना हमारा चेहरा देखे ही हमसे अनन्य प्रेम करने लगती है , सही मायने में प्रेम की कोई परिभाषा है तो वो माँ है ... आज के ब्लाग में    मै से माँ बनने के खूबसूरत  व कठिनतम  सफर का जिक्र ... जो आपके अन्तर्मन को झकझोर कर रख देगा .... (इस ब्लाॅग को लिखते वक्त गला रुंध गया है,  आखों से आँसू स्वतः ही निकल जा रहे हैं ...  अन्तर्मन से बार बार आवाज आ रही है क्या हम वाकई मर्द है  .... ?  मातृशक्तियों के सानिध्य में प्रतिपल पल्लवित पुष्पित होने का सौभाग्य विरले ही मिलता है , यदि हमे यह सौभाग्य प्राप्त हुआ है तो जरूर यह हमारे पुण्य कर्मों  का प्रतिफल है  ..)    संतान उत्पत्ति के लिए क्या आवश्यक है. .? पुरुष का वीर्य और औरत का गर्भ !!! बस इतना ही 🤔 लेकिन रुकिए ... सिर्फ गर्भ ??? नहीं... नहीं...!!! एक ऐसा शरीर जो इस क्रिया के लिए तैयार हो। जबकि वीर्य के लिए 13 साल और 70 साल का वीर्य भी चलेगा। लेकिन गर्भाशय का मजबूत ...

प्रकृति : जीना है प्यार से

 प्रकृति अहिंसा की प्रेमी है , और प्रेम की सबसे बड़ी उपासक है । प्रकृति की गोंद में स्वतंत्र विचरने ,  खेलने - जीने वाले समस्त चर - अचर  प्राणी , वस्तु की प्रकृति भी प्रकृति जैसी बन जाती है ......   परन्तु धरा पर सबसे बुद्धिमान प्राणी की ख्याति प्राप्त मानव की प्रकृति,  प्रकृति की मूल प्रकृति के एकदम खिलाफ है .....   मानव की फितरत ही ऐसी है कि वह अपने स्वार्थ की सिद्धि के लिए हर चीज के मूल स्वरूप को बदल के रख देता है ...... मानव एवं मानवी भूल का जीता जागता उदाहरण है कोरोना वायरस     एक करोना वायरस के आगे 150 करोड़ की आबादी वाला चीन अपने ही घर में बंदी बन गया है, सारे रास्ते वीरान हो गए ... एक सूक्ष्म सा जंतु और दुनियाँ  को आँखे दिखाने वाला चीन एकदम शांत,भयभीत। केवल चीन ही क्यों ? बल्की सारे विश्व को एक पल में शांत करने की ताकत प्रकृति में है ! हम जातपात, धर्म भेद, वर्ण भेद, प्रांतवाद के अहंकार से भरे हुए हैं । यह गर्व, यह घमंड करोना ने मात्र एक झटके में उतार दिया, बिना किसी भी प्रकार का भेद रखे सारे चीन को बंदी करके रख दिया है, ...

वसंत पंचमी की सार्थकता

ओउम् ।। वर दे, वीणावादिनि वर दे। प्रिय स्वतंत्र-रव अमृत-मंत्र नव     भारत में भर दे । काट अंध-उर के बंधन-स्तर बहा जननि, ज्योतिर्मय निर्झर; कलुष-भेद-तम हर प्रकाश भर        जगमग जग कर दे । नव गति, नव लय, ताल-छंद नव नवल कंठ, नव जलद-मन्द्ररव; नव नभ के नव विहग-वृंद को         नव पर, नव स्वर दे । वर दे, वीणावादिनि वर दे।। 💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐 भारत में शिक्षा और ज्ञान की देवी के रूप में जानीं जानें वाली माता आप भारतीय शिक्षा व्यवस्था को जातीय उन्माद से मुक्त कर दो माँ, अर्थ के अभाव में बेहतर से बेहतर प्रतिभा दर दर की ठोकरे खाता  सड़कों पर टहल रहा है.... और पैसे वाले डिग्रीयाँ खरीदकर खूद को अभिजात वर्ग में सम्मिलित कर बैठा है .....।। हे वागदेवी , वीणा वाली मैया  बिना किसी भेदभाव के शिक्षा को जन जन तक पहुँचा दो माँ ...... क्या अमीर और क्या गरीब जो जितना भी पढ़ना लिखना चाहे बिना किसी रूकावट के वह पढ़ लिख ले माँ तब जाकर इस बसंत पंचमी की सार्थकता भारत भूमि पर पल्लवित और पुष्पित होगी माँ.... ✍ कुलदीप योगी 

माँ

माँ झूठ बोलती है..... सुबह जल्दी उठाने सात बजे को आठ कहती  नहा लो, नहा लो, के घर में नारे बुलंद करती है, मेरी खराब तबियत का दोष बुरी नज़र पर मढ़ती  छोटी परेशानियों का बड़ा बवंडर करती है   ..........माँ बड़ा झूठ बोलती है थाल भर खिलाकर तेरी भूख मर गयी कहती है   जो मैं न रहू घर पे तो मेरे पसंद की  कोई चीज़ रसोई में उनसे नही पकती है, मेरे मोटापे को भी कमजोरी की सूज़न बोलती है  ..........माँ बड़ा झूठ बोलती है  दो ही रोटी रखी है रास्ते के लिए बोल कर  एक मेरे नाम दस लोगो का खाना भरती है,  कुछ नही-कुछ नही, बोल नजर बचा बैग में  छिपी शीशी अचार की बाद में निकलती है  .......माँ बड़ा झूठ बोलती है  टोका टाकी से जो मैं झुंझला जाऊ कभी तो, समझदार हो अब न कुछ बोलूंगी मैं, ऐसा अक्सर बोलकर वो रूठती है  अगले ही पल फिर चिंता में हिदायती होती है  ........माँ बड़ा झूठ बोलती है   तीन घंटे मैं थियेटर में ना बैठ पाउंगी, सारी फिल्मे तो टी वी पे आ जाती है, बाहर का तेल मसाला तबियत खराब करता है  बहानो से अपने पर होने वाले खर्च टालती...

बन्धनो से स्वतंत्रता : स्वतंत्रता की रक्षा का पर्व (स्वतंत्रता दिवस + रक्षा बंधन)

स्वतंत्रता दिवस + रक्षाबंधन = बन्धनो से स्वतंत्रता की रक्षा का पर्व  आप सभी संभ्रांत प्रबुद्ध जनो को 15 अगस्त स्वंत्रता दिवस की 73 वी वर्षगांठ की व प्रेम एवं सौहार्द का प्रतीक पवित्र पर्व रक्षा बन्धन की हार्दिक शुभकामनायें ..... 19 वर्षों उपरान्त ऐसा शुभ संयोग बन रहा है जब स्वतंत्रता दिवस एवं रक्षाबंधन एक साथ मनाया जा रहा है .... यदि आप स्वतंत्रता दिवस व रक्षा बंधन की अमर गाथाओं से भलीभाँति परिचित हैं तो इस नूतन भारत के विनिर्माण में अपना अतुलनीय योगदान देने की कृपा अवश्य करें .... देश को आजाद हुए 7 दशक से भी ज्यादा समय बीत चुका है, तमाम युवा साथियों से एक गुजारिश है ... खुद से एक सवाल कीजिए कि ....... क्या हम वास्तव में आजाद हैं? क्या हम विभिन्न प्रकार के प्रदूषणो (सामाजिक,  आर्थिक,  राजनैतिक,  सांस्कृतिक,  चारित्रिक,  शैक्षिक,  मानसिक) से आजाद हैं ?  क्या हम आज तक सामाजिक भेदभाव से आजाद हो पाए ?  क्या हमारे विचार आजाद हैं?  क्या हमें अभिव्यक्ति की आजादी है ?  क्या हमें अपने स्वतंत्र निर्णय लेने की आजादी है ?...

पर्यावरण : अभिभावक से अतिथि तक का सफर

प्रकृति हमारी माँ है , माँ से  प्रेम करना और उसकी रक्षा करना हमारा परम कर्तव्य है । हमारे दादाओं- परदादाओं के समय पर्यावरण की भूमिका हमारे अभिभावक के रूप में थी ..परन्तु . आज हमारी कारस्तानियों की वजह से यह अतिथि की भूमिका में आ गया है .... एक वक्त वो था जब प्रकृति हमें सजाती और संवारती थी , एक वक्त आज का है . ...जहाँ  प्रकृति अपने स्वरूप व अस्तित्व  के लिए अपनी ही संतान(मानव) के  आगे  लाचार व बेबस पड़ गयी है ।   आइए एक साथ अपने आने वाले कल को सुरक्षित करे 🤝🤝🤝🤝🤝🤝🤝🤝🤝🤝🤝🤝 अपने आस पास साफ सफाई करके इस मुहिम का हिस्सा बनें ....... प्रकृति के साथ खेलने का नतीजा -:                                                                        एक बार   एक बकरी के पीछे शिकारी कुत्ते दौड़े। बकरी जान बचाकर अंगूरों की झाड़ी में घुस गयी।  कुत्ते आगे निकल गए। बकरी ने निश्चिंतापूर्वक...