ओउम् ।।
शिवत्व की करें आराधना ....
अर्थात शिव में स्थित तत्व को जानें और अपनें चित्त और चेतना के प्रवाह को उधर ही गति दें .....।।समस्त समष्टि पृथ्वी,आकाश, जल,अग्नि और वायु जैसे पंचतत्तो का खूबसूरत सम्मिश्रण है जिन्हें हम जड़ तत्व की संज्ञा देते हैं....जब इन जड़ तत्वों में प्राणतत्व का समावेश होता है तब एक चेतन तत्व का प्रादुर्भाव होता है ......
इस प्रकार समस्त समष्टि जड़ और चेतन का एक विराट स्वरूप है जो संचालित होता है अदृश्य शक्ति,सत्ता अथवा ऊर्जा से जिन्हें धरा के भिन्न भिन्न भागों में अलग-अलग मान्यताओं के अनुसार ईश्वर,ख़ुदा,गाँड और भगवान जैसे नामों से जानाँ जाता है ......
उनमें से ही एक नाम है "शिव" ....जो सूचक हैं उच्चतम कोटि की साधना का ....
सामान्यतः जब कोई व्यक्ति अपनी साधना को ऐसी उच्चतम स्थिति में पहुँचाता है जहाँ वह अतीन्द्रिय हो जाता है अर्थात जब उसकी शक्ति और सामर्थ्य उसके पाँचों इंद्रियों के पार हो जाती है तो व्यक्ति उस शिवत्व को जाननें की क्षमता प्राप्त कर लेता है जिससे इस सृष्टि का संचालन हो रहा है .....
भगवान शिव के रूप में आज जिसकी पूजा अर्चना हो रही है वह ऐसे ही अतीन्द्रिय पुरूष हैं जिन्होंने अपनी योग साधना में खुद को ध्यान के ऐसे शिखर तक पहुँचायें हैं जहाँ वर्तमान,भूत और भविष्य की विभाजन रेखाएँ विलुप्त हो जाती हैं और यही कारण है कि ऐसे शिव को आदि योगी के नाम से जाना जाता है....
समस्त सृष्टि का संचालन ऊर्जा के विभिन्न स्वरूपों के माध्यम से ही हो रहा है ....सम्पूर्ण सृष्टि में जितनी शक्ति अथवा सामर्थ्य होती है उतनी ही शक्ति और सामर्थ्य एक इंसान के भीतर हमेशा सुसुप्ता अवस्था में विराजमान होती है और अज्ञानता के कारण और उच्चतम कोटि की साधना के अभाव में ऐसी शक्तियों को व्यक्ति कभी भी अपनें जीवन में प्रस्फुटित नहीं कर पाता है और अन्त में मृत्यु को प्राप्त होता रहता है ......
शिव एक प्रतीक हैं ऐसे शक्ति और सामर्थ्य को जगाने का, अपनें भीतर सन्निहित शक्ति और तेज को जाननें का .....उच्चतम कोटि की साधना की ओर जाने का यदि कोई प्रतीक हैं तो वह हैं "शिव" और "शिवत्व"......
लेकिन आज जबकि अपना अध्यात्मिक मार्ग पूर्ण रूप से पथविहीन हो चुका है ऐसी स्थितियों में भांग,धतूरा और नशे से युक्त होकर मात्र हुड़दंगयी करना कोई आश्चर्यचकित करनें वाली बात नहीं रह गई है और जब तक शिवत्व को एक उच्चतम कोटि की साधना की ओर अग्रसर नहीं किया जायेगा तब तक यह "आधुनिक शिवरात्रि" एक आध्यात्मिक विकृतियों के रूप में ही जन जन तक प्रचारित और प्रसारित होती रहेगी .....
अतिउत्तम विचार । शिव से शिवत्व की ओर.....बहुत ही सुन्दर।।
ReplyDeleteबहुत बहुत धन्यवाद 🙏💐
Deleteसादर प्रणाम जी
बहुत सुंदर।
ReplyDeleteओउम् जी भ्राता जी बहुत बहुत धन्यवाद ।। सादर प्रणाम 🙏💐
Deleteबहुत सुंदर
ReplyDeleteसादर अभिवादन
DeleteVery good.
ReplyDeleteसादर अभिवादन
Deleteयोग: कर्मसु कौशलम्
ReplyDeleteसादर अभिवादन
Deleteसादर अभिवादन
Deleteओउम् आदरणीय सादर अभिवादन
ReplyDeleteBeautifully written
ReplyDeleteसादर अभिवादन
Deleteओम
ReplyDeleteओउम् आदरणीय सादर प्रणाम
Delete